बिंदायक जी की कथा
bindayak ji ki katha
एक विनायक जी महाराज थे|एक हाथ में थोड़े से चावल और दूसरे हाथ में एक छोटी लुटिया में थोड़ा सा दूध लेकर घूम रहे थे की कोई मेरे लिए चावलों की खीर बना दे|अब इतने थोड़ी सी सामग्री से खीर कोई कैसे बनाये इसीलिए कोई राजी नहीं हो रहा था|अंत में एक बुढ़िया माई ने कहा की ला बेटा मैं तेरे लिए खीर बना देती हूँ|
विनायक जी महाराज को अंदर बिठा कर,बुढ़िया माई बाहर जाने लगी तो विनायक जी पूछने लगे की कहाँ जा रही हो|इस पर बुढ़िया माई ने कहा की बेटा खीर बनाने के लिए बर्तन मांग लाऊँ फिर बना दूंगी|तो बिंदायक जी बोले की माई घर में सब कुछ है,अंदर आ के तो देख| बुढ़िया माई जैसे ही वापस अंदर आई तो देखा की दूध का भगोना भरा हुआ रखा है और चावलों की परात भरी हुई रखी है|उसने अंदर आके चूल्हा जलाया और बड़े से बर्तन में खीर पकने के लिए रख दी और काम से बाहर चली गयी|खीर में उबाल आ गया और खीर निकलने लगी तो बुढ़िआ माई की बहु ने कटोरा भर लिया और घर का दरवाजा बंद करके, गणेश जी को छींटा लगा कर,खीर खाने लगी|थोड़ी देर बाद बुढ़िया माई आयी और बिंदायक जी महाराज से बोलने लगी की बेटा खीर बन गयी है आके खा लो|इसपे बिंदायक जी महाराज बोले की माई मैंने तो तभी खा ली जब तेरी बहु ने छींटा दिया था|अब बुढ़िया माई ने बहु को पुछा की उसने खीर झूटी क्यों की?तो बहु बोलने लगी की सासु माँ खीर बाहर निकलने लगी थी तो मैंने कटोरे में भर कर खा ली और गणपति जी को भी खिला दी|
फिर माई ने बिंदायक जी महाराज को देखा और पुछा की महाराज अब इस खीर का क्या करूँ? बिंदायक जी महाराज बोले की माई खा ले और बाँट दे|बुढ़िया माई कितनी खीर खा सकती थी तो उसने बाकी की खीर बांटनी शुरू कर दी|लोगों ने देखा तो बात बनाई की कल तक तो बुढ़िया माँ खुद भूखी रहती थी पर आज खीर बाँट रही है|
बिंदायक महाराज ने और कृपा की खूब अन्न-धन हो गया,टूटी झोपड़ी सा घर महल में बदल गया,नौकर चाकर आ गए और सब तरह की मौज हो गयी|
हे बिंदायक जी महाराज,जैसा बुढ़िया माई को दिया वैसे ही सब को देना|कहते,सुनते और हुंकारा भरते हर एक को देना|
जय बिंदायक जी महाराज
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