जैसा की हम सब जानते हैं की भगवान् विष्णु ने इस धरती पर समय समय पर कई अवतार लिए हैं और यहाँ से बुराई को ख़त्म कर धर्म को पुनः स्थापित किया किया है। इस कार्य को करने हेतु भगवन विष्णु ने सतयुग के समय आधे मानव और आधे सिंह के रूप में अपना चौथा अवतार भगवान् नरसिंह नाम से लिया था और भक्त प्रह्लाद की रक्षा कर, राक्षस हिरण्यकश्यपु को समाप्त कर इस धरा पर पुनः धर्म की स्थापना की थी।
नरसिंह जयंती क्या है ?
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नरसिंह जयंती अर्थात वह दिन जब भगवन विष्णु ने इस धरती पर अपना चौथा अवतार लिया था। उनका यह अवतार आधे मानव और आधे शेर के रूप में था जिस कारण इसको भगवन विष्णु का नरसिंह/narsimha अवतार भी कहा जाता है। भगवान के भक्त इस दिन पूजा – पाठ, व्रत एवं धार्मिक गतिवधियों द्वारा, भगवान नरसिंह की विशेष कृपा प्राप्त करने हेतु प्रयास करते हैं।
नरसिंह चतुर्दशी
बैसाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने अपना 4था अवतार नरसिंह के रूप में लिया था। इसी उत्सव को मनाने हेतु, हर वर्ष इस दिन को भगवान नरसिंह चतुर्दशी / भगवान नरसिंह जयंती के रूप में पूजा जाता है।
नरसिंह जयंती क्यों है इतनी खास
नरसिंह जयंती केवल एक दिन नहीं अपितु अपने आप में एक पर्व है और बहुत खास है क्योंकि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान् विष्णु ने भक्त प्रह्लाद की पुकार पर, अपना चतुर्थ अवतार लिया था और बुराई के प्रतीक राक्षसराज हिरण्यकश्यप को मारकर इस धरती पर पुनः धर्म ध्वजा स्थापित की थी।
नरसिंह जयंती पूजा विधि
- कोई भी पुरुष अथवा महिला इस व्रत को कर सकते हैं।
- सर्वप्रथम तो प्रातः काल उठकर,दैनिक क्रियाकलापों से निवृत होकर स्नान करना चाहिए|
- वैदिक मन्त्रों का उच्चारण कर अपने घर को शुद्ध करें।
- तत्पश्चात भगवान नरसिंह की प्रतिमा को स्नानादि कवकर साफ़ करें। ।
- इसके बाद प्रतिमा को आसन पर स्थापित करके धुप,दीप,नैवैद्य अर्पित करें।
- तत्पश्चात आरती करके, भगवान् को फलों का भोग लगाएं।
- अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए सभी पापों के लिए, भगवान् से क्षमा प्रार्थना करें।
- काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार आदि से दूर रहें एवं निर्मल चित्त से भगवान का स्मरण करें|
- अपनी श्रद्धा एवं शक्ति अनुसार ब्राह्मण को दान-दक्षिणा एवं वस्त्रों का दान दें।
- सूर्यास्त के समय मंदिर जाकर यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।
नरसिंह हिरण्यकश्यप कथा / नरसिंह जयंती व्रत कथा
पौरणिक मान्यतों के अनुसार, प्राचीन काल में राजा कश्यप थे जिनके 2 पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप थे। अपने पिता राजा कश्यप की मृत्यु के बाद बड़ा पुत्र राजा हिरण्याक्ष राजा बना। हिरण्याक्ष एक क्रूर प्रवति का शासक था और बड़ा ही अधर्मी प्रवृति का था। उसके शासनकाल में सब तरफ हाहाकार था और भगवान के भक्त बड़े कष्ट में थे। यह सब देख कर भगवान् विष्णु ने वराह अवतार में इस धरा पर जन्म लिया और हिरण्याक्ष को मारकर सब लोगों का दुःख दूर किया।
परन्तु अपने भाई हिरण्याक्ष के मौत से हिरणकश्यप बड़ा दुःख हुआ और उसने भगवान् विष्णु से बदला लेने की ठान ली। अपनी शक्तियों को और अधिक बढ़ाने हेतु हिरणकश्यप ने बहुत कठोर तप किया एवं बहुत से वरदान एवं शक्तियां प्राप्त कर ली। उसने अपनी तपस्या से ऐसा वरदान प्राप्त किया जिसके कारण वह न तो दिन मर सकता था, न रात में, न घर में मर सकता था, न घर से बाहर, न मानव से मर सकता था, न दानव से, न अस्त्रों से मर सकता था और न ही शस्त्रों से। इस प्रकार के वरदान से वह खुद को अमर समझ बैठा था और इसी अहंकार में उसने अधर्म और अन्याय की सभी सीमायें लांघ दी थी।
हिरण्यकश्यप ने खुद को भगवान् घोषित कर दिया था और उसकी प्रजा उसी की पूजा करती थी क्योंकि प्रजा को किसी और की पूजा करने पर मृत्युदंड दे दिया जाता था। इसी दौरान उसके घर में एक बालक का जन्म हुआ और उसका नाम प्रह्लाद रखा गया। हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को भी यही कहा की मैं ही भगवन हूँ और सब लोगो की भांति तुमको भी मेरी ही पूजा करनी चाहिए परन्तु प्रह्लाद ने इस बात को नहीं माना। वह भगवन विष्णु का परमभक्त बन गया और उन्ही कि पूजा अर्चन करने लगा।
अब चूँकि हिरण्यकश्यपु खुद को ही भगवान मान चूका था और ऐसे में उसका खुद का पुत्र किसी और की पूजा करे, यह उसको कतई स्वीकार नहीं था। इसी कारण उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने हेतु अनेक प्रयास किये परन्तु उसका हर प्रयास बेकार गया और भगवान् विष्णु ने भक्त प्रह्लाद की हर कदम पर रक्षा की।
परन्तु एक दिन हिरण्यकश्यपु ने सभी हद पार करते हुए प्रह्लाद पर तलवार से वार कर प्रह्लाद को चेतावनी दी की या तो मुझे भगवान् मान वरना अपने भगवान् को अपनी रक्षा के लिए बुला। भक्त प्रह्लाद की पुकार और हिरण्यकश्यप के बढ़ते हुए अधर्म को समाप्त करने हेतु तब भगवान् विष्णु ने अपना चतुर्थ अवतार लिया और एक खम्बे को फाड़कर नरसिंह रूप में प्रकट हुए।
भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप के वरदान की सभी शर्तोंको पूरा करते हुए संध्या के समय अर्थात न दिन न रात, नरसिंह रूप में अर्थात न मानव न दानव, चौखट पर अर्थात न घर के भीतर न बाहर, अपने जंघा पर लिटाकर अर्थात न धरा पर न आकाश में और अपने पैने नाखूनों से अर्थात न अस्त्र से न शस्त्र से, उसका वध कर दिया।
और इस प्रकार पुनः असत्य पर सत्य की जीत हुई और यह दिवस एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।