आशा भगोती व्रत कथा / आशा भोगती व्रत कथा
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आशा भोगती व्रत महातम्य
आशा भोगती का यह व्रत महिलाओं द्वारा किया जाता है जिसमें माँ भगवती के पार्वती रूप की पूजा की जाती है। यह व्रत, सब मनोकामनाओं को पूर्ण कर आर्थिक समृद्धि और चहुंदिश खुशहाली को लाता है। सभी आशाओं को पूर्ण करने का सामर्थय होने के कारण इस व्रत को आशा भगोती या आशा भोगती व्रत के नाम से जाना जाता है।
आशा भगोती व्रत कब होता है
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी या श्राद्ध पक्ष की अष्टमी से शुरू होने वाला यह व्रत 8 दिन तक चलता है और सर्व-पितृ अमावस्या के दिन पूर्ण होता है।
आशा भगोती व्रत कैसे किया जाता है
व्रत के प्रथम दिन यानि जिस दिन व्रत शुरू करना है उस दिन , रसोई के 8 कोनों को गाय के गोबर से पोत कर आशा भोगती की कहानी सुनें/पढ़ें। इसके बाद गोबर पुते हुए 8 कोनों पर अगले 8 दिन तक रोज, नीचे लिखी हुई सामग्री चढ़ाएं:
1) दूध
2) 8 रूपए
3) 8 रोली / कुमकुम के छींटे
4) 8 मेहँदी के छींटे
5) 8 काजल की टिक्की या काजल का निशान
6) 1 सुहाली
7) 1 दिया जलाएं
अब व्रत के आखिरी दिन मतलब की सर्वपितृ अमावस्या के दिन , 8 फल और 8 सुहाग की पिटारी / श्रृंगार डब्बा चढ़ाएं और व्रत करें। आठवें दिन पूजा और कथा करने के बाद 8 सुहागनों को भोजन करवाएं और भोजन के बाद 8 सुहाग पिटारियों के अंदर सुहाग-श्रृंगार का सामान डाल कर, साथ में एक एक सुहाली या मिठाई और दक्षिणा डाल कर, उन सभी 8 सुहागिनों को दें और पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
इस व्रत को 8 वर्षों तक करें और 9 नौवें वर्ष में इसका उद्यापन कर देवें। व्रत के दिनों में रोज आशा भोगती / आशा भगोती कथा जरूर सुनें।
आशा भगोती व्रत कथा
प्राचीन लोकश्रुतियों के अनुसार यह कहानी हिमाचल के राजा से जुड़ी है। कहा जाता है की राजा के 2 बेटियाँ थीं जिनका नाम था गौरा और पार्वती। एक दिन राजा ने दोनों को अपने पास बुलाया और उनसे पुछा की तुम दोनों किसके भाग्य का खाती हो ?
इस पर पार्वती ने कहा की मैं तो अपने भाग्य का खाती हूँ और गौरा ने कहा की पिताजी मैं तो आपके भाग्य का खाती हूँ। इस बात को सुनकर न जाने राजा के मन में क्या आया और उसने ब्रह्मण को बुलाकर कहा की मेरी पुत्रियों के लिए वर ढूंढो, मुझे उनका विवाह करना है। साथ ही कहा की पार्वती के लिए कोई गरीब वर ढूंढ कर लाना और मेरी गौरा के लिए कोई राजकुमार ढूँढना।
राजा के कहे अनुसार ब्राह्मण ने गौरा के लिए एक धनी राजकुमार ढूंढा और पार्वती के लिए एक गरीब व्यक्ति ( दरअसल भगवान शिव ही गरीब व्यक्ति के भेष में पार्वती से विवाह के लिए चुने गए थे)। राजा ने भी पार्वती के विवाह के लिए कोई तैयारी नहीं करी परन्तु गौरा के विवाह के लिए बहुत अच्छे इंतेज़ाम किये हुए थे। और पार्वती को बिना किसी भेंट उपहार के खाली हाथ विदा कर दिया परन्तु गौरा को अनेक-अनेक संसाधनों के साथ विदा किया।
कैलाश पहुंचकर पार्वती जी जहाँ पर भी पैर रखती उस जगह की दूब जल जाती और कैलाश पर्वत पर ऐसा देख भगवान् शिव ने पंडितों को इसका निवारण पुछा तो उन्होने कहा की पार्वती जी को अपने पीहर जाकर आशा भगोती का उद्यापन करना पड़ेगा तभी यह दोष दूर होगा।
व्रत का उद्यापन करने हेतु सभी लोग सज संवर कर और खूब गहने पहनकर निकल पड़े। रास्ते में उन्होने देखा की एक रानी को बच्चा होने वाला है और वह प्रसव पीड़ा से बहुत परेशान है जिसको देखकर देवी पार्वती ने हठ किया की मेरी कोख बाँध दो और भगवान् शिव ने ना चाहते हुए भी उनकी बात मान ली।
अब देवी पार्वती जी अपने पीहर पहुंची तो किसी ने भी नहीं पहचाना पर जब उन्होने अपना परिचय दिया तो सब बड़े ही खुश हुए। पार्वती जी ने देखा की उनकी भाभियाँ आशा भगोती उद्यापन कर रहीं हैं तो उन्होंने कहा की मेरी तैयारी नहीं है नहीं तो मैं भी आपके साथ ही उद्यापन कर लेती। इस पर उनकी भाभियाँ बोली की तुम्हारे किस चीज़ की कमी है ? शिव जी को बस कहने की देर है, सारी तैयारी वो खुद ही कर देंगे। और ऐसा कहकर उन्होंने एक दासी को शिव जी के पास भेज दिया की पार्वती जी को उद्यापन करना है और सामग्री चाहिए।
शिव जी ने दासी की बात सुनकर उसके हाथ में अपनी एक अंगूठी दी और कहा की इसको पार्वती को देना और कहना की जो चाहिए इस अंगूठी से मांग लें और तैयारी करके उद्यापन कर लें। शिव जी की महिमा और अंगूठी का चमत्कार, पार्वती जी ने देखते ही देखते सभी तैयारी कर ली और उद्यापन करने लगीं तो उनकी भाभियाँ बोली की तुमने तो सब तैयारी चुटकियों में कर ली हम तो कई महीनों से तैयारी में लगीं हुई हैं तब जाकर सब सामग्री एकत्रित कर पायीं हैं।
अब शिव जी ने कहा की पार्वती जी उद्यापन सम्पूर्ण हो गया है तो अब घर वापस चलते हैं। इस दौरान ससुर जी ने शिव जी को भोजन करने का न्योता भिजवा दिया जिसपर शिव जी , पार्वती माँ सहित खूब सारे गहने पहनकर ; भोजन करने चल पड़े। नगर वालों ने देखा की पार्वती जी का विवाह तो गरीब से व्यक्ति के साथ हुआ था परन्तु यहाँ तो किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है, और वाकई में जैसा पार्वती ने राजा से कहा था , वह अपने भाग्य से राज ही कर रही हैं।
अब भगवान् शिव भोजन करने बैठे तो सारा भोजन समाप्त कर दिया और माँ पार्वती के लोए सिर्फ एक उबली हुई सब्जी ही शेष रह गयी। पार्वती जी ने वह सब्ज़ी खायी और ठंडा पानी पीकर , शिवजी के साथ कैलाश की और रवाना हो गयी।
रास्ते में विश्राम करने को रुके तो शिव जी ने पूछा की देवी आपने क्या खाया है ? पार्वती जी ने कहा की जो अपने खाया है वही मैने भी खाया है। इस पर शिवजी हंसने लगे और बता दिया की आप तो सिर्फ उबली सब्ज़ी खाकर आयी हो। यह सुनकर माँ पार्वती ने कहा की आपने मेरा पर्दा तो खोल दिया मगर किसी और का मत खोलना और राज़ को राज़ ही रहने देना।
अब विश्राम के बाद आगे बढ़े तो देखा की जो रानी प्रसव पीड़ा से अत्यंत दुखी थी वह अब खुशियां मना रही है और कुंवे पर भीड़ लगी है। लोगों से पूछा तो पता चला की रानी ने पुत्र को जन्म दिया है और अब कुंवा पूजन चल रहा है। यह सब देख और सुनकर देवी पार्वती ने फिर से हठ किया की मेरी कोख खोलो। अब शिवजी ने कुछ चमत्कार किया और गणेश जी को उत्पन्न किया फिर माँ पार्वती ने सभी नेकचार पूरे कर उत्सव मनाया।
पुत्र की ख़ुशी में देवी पार्वती ने कहा की मैं तो सबको सौभाग्य बाँटूंगी और यह सुनकर वहां भीड़ लग गयी और सब लड़कियां अपना-अपना सौभाग्य लेकर चली गयी। कुछ लड़कियां देर से आयी तो देवी ने कहा की सारा सौभाग्य बाँट चूँकि हूँ और अब कुछ भी शेष नहीं हैं जिसपर भगवान् शिव ने कहा की आपको इन सभी लड़कियों को भी सौभाग्य देना पड़ेगा।
अब देवी पार्वती ने अपने हाथों से मेहँदी, मांग में से सिन्दूर, माथे से बिंदिया की रोली और आँखों में काजल निकाल कर चितली ऊँगली से छींटा दिया और सभी को सौभाग्य मिल गया और हर गली हर तरफ माँ पार्वती की जयजयकार हो गयी की उन्होने सबको सौभाग्य दिया और इस व्रत से प्रेरणा लेकर सभी ने आशा भगोती का व्रत किया। हे माँ पार्वती जैसे उन कन्याओं को सौभाग्य दिया वैसा ही हर कहने सुनने और इस व्रत को करने वाले को देना।।
विशेष:इस कथा के बाद नीचे दी गयी बिंदायक जी महाराज की कथा जरूर पढ़ें|
बिंदायक जी की कथा:
बिंदायक जी की कथा पढ़ने के लिए इस लिंक में जाएं:https://hindipen.com/bindayak-ji-ki-katha/