अक्षय तृतीया/आखा तीज
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अक्षय तृतीया का पर्व, बैसाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और इसी दिन अक्षय तृतीया का व्रत भी रखा जाता है। इस त्यौहार को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है और पूरे भारत वर्ष में इसको वर्ष के सर्वोत्तम दिनों में गिना जाता है। हिन्दू और जैन समुदाय के लोगों के लिए यह दिन एक अत्यंत खास मुहूर्त है जिसको पूरे साल भर के सबसे उत्तम दिन के रूप में पूजा जाता है।
शाब्दिक तौर पर अक्षय तृतीया, 2 शब्दों के मेल से बना है – अक्षय मतलब की जिसका कभी क्षय न हो/कभी खत्म न हो और तृतीया अर्थात तृतीया तिथि। इस प्रकार अक्षय तृतीया का अर्थ होता है कभी न समाप्त होने वाला।
पौराणिक ग्रंथों और शास्त्रों में, अक्षय तृतीया को स्वयं सिद्ध एवं अत्यंत शुभ मुहूर्तों में से एक कहा गया है और ऐसा वर्णन है की चारों युगों की शुरुआत भी इसी दिन से होती है और इसी कारण इन युगों का चक्र कभी समाप्त नहीं होता अपितु निरंतर चलता रहता है और आगे बढ़ता ही रहता है। वर्तमान समय में भी, आखा तीज को एक शुभ मुहूर्त के रूप में देखा जाता है और ऐसा माना जाता है की किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत के लिए यह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है और इस दिन आरम्भ किया गया कोई भी काम विशेष रूप से फलीभूत होता है। विवाह के दृष्टिकोण से से भी इस तिथि का विशेष महत्व है और विशेष तौर पर उन लोगों के लिए जिनके गृह-नक्षत्र-गण आदि किसी वजह से शुभ मुहूर्त में बाधा डाल रहे हो, उनके लिए इस दिन विवाह करना सब प्रकार से शुभ फलदायी रहता है।
अक्षय तृतीया 2024
इस वर्ष 2024 में, अक्षय तृतीया का यह अति शुभ मुहूर्त दिनांक 10-मई-2024, दिन शुक्रवार को आएगा। इस दिन अक्षय तृतीया का व्रत भी किया जाता है और ऐसा माना जाता है की इस व्रत का लाभ अक्षय है और सदैव इसके शुभ फल मिलते रहेंगे।इस लेख में हम आपको आखा तीज के व्रत से जुड़ी सभी जानकारी, व्रत कथा देने के साथ साथ उन जरुरी बातों के बारे में भी बताएंगे जिनको अपनाकर आप भी इस शुभ मुहूर्त का पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकेंगे। इसके साथ साथ हम उन बातों पर भी प्रकाश डालेंग जिनसे हमें बचकर रहना है ताकि हमारी सुख समृद्धि अक्षय बनी रहे। तो चलिए, आगे बढ़ते हैं और जानते हैं इस पर्व को और ज्यादा नज़दीक से।
अक्षय तृतीया व्रत विधि
यह व्रत विशेष रूप से भगवान नारायण एवं देवी लक्ष्मी जी की कृपा एवं दया प्राप्ति हेतु किया जाता है क्योंकि सभी जानते हैं की भगवान् श्री नारायण ही इस जग के पालनहार हैं और देवी लक्ष्मी ही सब प्रकार के धन ऐश्वर्य की देने वाली हैं। इस व्रत को निम्नलिखित विधि द्वारा सिद्ध किया जाता है:
- सर्वप्रथम तो प्रातः काल उठकर,दैनिक क्रियाकलापों से निवृत होकर स्नान करना चाहिए|
- तत्पश्चात भगवन विष्णु एवं देवी लक्ष्मी जी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान करवाना चाहिए।
- अब प्रभु प्रतिमा को फूल एवं फूलमाला अर्पित करने चाहिए।
- इसके बाद धुप एवं घी का दीपक लगाकर, पूजन एवं आरती करनी चाहिए।
- आरती होने के बाद मिश्री तथा भीगे हुए चनों से भगवान् को भोग लगाएं।
- नेवैद्य अर्पित कर अपनी पूजा सम्पूर्ण करें।
- यदि संभव हो सके तो अपनी श्रद्धानुसार, ब्राह्मण को भोजन करवाकर और दक्षिणा दे कर विदा करें।
अक्षय तृतीया व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक महोदय नाम का वैश्य था जो कुशावती नगरी में निवास करता था। एक दिन उसने अपने घर पर ब्राह्मण भोज का आयोजन किया हुआ था। उसके सेवा भाव एवं धर्म कर्म में उसकी रुचि को देख ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ और उस ब्राह्मण ने अक्षय तृतीया के बारे में महोदय को बताया और अगले वर्ष इस व्रत को श्रद्धापूर्वक पूरा करने को कहा।
ब्राह्मण द्वारा अक्षय तृतीया का वर्णन एवं प्रताप सुनकर वैश्य बहुत प्रभावित हुआ और उसने मन में इस व्रत को पूर्ण करने का निश्चय किया।अगले वर्ष बैसाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को उसने ब्राह्मण के बताये अनुसार श्री लक्ष्मीनारायण का पूजन अर्चन किया और व्रत रखा और व्रत के प्रताप तथा भगवान् की कृपा से समय का ऐसा फेर चला की बहुत थोड़े वक़्त में वह कुशावती नगरी का राजा बन गया।उसके भंडार अन्न-धन,सोना-चांदी से भरपूर रहने लगे और देश के सम्रृद्ध राजाओं में उसकी गिनती की जाने लगी।
इतना सब होने के बाद भी वह राजा धर्म-कर्म से जुड़ा ही हुआ था और पहले से भी बढ़कर दान-धर्म में लगा रहता था। उसके साम्राज्य में सब और सुख शान्ति थी एवं प्रजा सर्व प्रकार से सुखी जीवन-यापन कर रही थी। राजा सदा दान में ही लगा रहता था और खुले हाथों और खुले ह्रदय से दान करता था पर भगवान् की कृपा से उसके खजाने में कोई कमी नहीं आती थी अपितु यह खज़ाना बढ़ता ही रहता था।
राजा की बढ़ती दानवीरता और साथ ही ऐश्वर्य की बढ़ोतरी देख, एक जिज्ञासु ने राजा से इसका वास्तविक राज जानने की इच्छा प्रकट की। इस पर राजा ने उस जिज्ञासु को बताया की यह सब भगवान् श्री लक्ष्मीनारायण जी की कृपा एवं अक्षय तृतीया व्रत के प्रताप से ही है और इस व्रत से जुड़ी सभी जानकारी भी उस जिज्ञासु को प्रदान की।
राजा से प्राप्त ज्ञान को जिज्ञासु ने सारी प्रजा को बताया और राजा की जीवनी से प्रेरणा लेकर पूरी प्रजा और उस जिज्ञासु ने भी राजा के साथ मिलकर इस व्रत को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया जिसके फलस्वरूप सभी लोगों को इस व्रत का फल प्राप्त हुआ और उन सबका जीवन भी सुख-समृद्धि से भर गया।
हे श्री लक्ष्मीनारायण भगवान्, हे श्री आखा तीज देवी, जैसा उस राजा को दिया वैसा ही फल हर श्रद्धालु भक्त को देना, हर कहने-सुनने वाले, जिक्र करने वाले को देना।
अक्षय तृतीया और जैन धर्म
अक्षय तृत्य को जैन समाज में भी बड़ा ही पवन पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है की जैन समाज के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी जिनको ऋषभदेव के नाम से भी जाना जाता है उन्होने लगभग एक वर्ष तक तपस्या करने के बाद इसी अक्षय तृतीया के दिन, राजकुमार श्रेयांश के हाथों से शुद्ध आहार के रूप में इक्षु रस ग्रहण किया था और अपनी तपस्या का पारण किया था।
इक्षु रस को वर्तमान समय में गन्ने का रस कहा जाता है और यह एक शुद्ध आहार के रूप में प्रचलित है। प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव की तपस्या सम्पूर्ण होने के कारण जैन अनुयायिओं में भी अक्षय तृतीया को पवित्र मुहूर्त माना जाता है और जैन धर्म के लोग इस दिन सोना चांदी खरीदने के साथ साथ, गन्ने का रस बाँटना भी अति शुभ मानते हैं।
अक्षय तृतीया:अबूझ मुहूर्त से जुड़ी विशेष बातें
उपरोक्त वर्णित व्रत विधि एवं व्रत कथा के साथ साथ, इस आखा तीज के दिन कुछ विशेष बातों पर जरूर ध्यान देना चाहिए ताकि हमारी सुख समृद्धि सदैव बरकरार रहे और भगवान् की विशेष कृपा हम पर बनी रहे। यह जानकारी आगे लेख में दी गयी है जिसको पाठक अवश्य पढ़ें,ऐसा आपसे निवेदन है:
अक्षय तृतीया के दिन क्या खरीदें/क्या करें :
- इस दिन को अक्षय यानि कभी न ख़त्म होने वाले दिन के रूप में जाना जाता है तो ऐसे में लोग इस दिन सोना या स्वर्ण आभूषण खरीदना ज्यादा शुभ मानते हैं।
- किसी भी नए काम की शुरुआत इस दिन करने से, उस कार्य में सफलता प्राप्ति के संयोग बढ़ जाते हैं।
- विवाह एवं सगाई आदि के लिए भी यह दिन अत्यंत ही शुभ बताया गया है।
- इस दिन आप घर,दुकान,जमीन जैसे वित्तीय संसाधनों में भी निवेश कर सकते हैं।
- बच्चों के नामकरण संस्कार, मुंडन संस्कार आदि के लिए भी यह दिन अति उत्तम माना गया है।
- गृहप्रवेश के लिए यह दिन शुभ माना गया है।
- अगर संभव हो सके तो, आज के दिन वृन्दावन जरूर जाएं क्योंकि पूरे वर्ष में केवल अक्षय तृतीया के दिन ही बिहारी जी के पाँव के दर्शन किए जा सकते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन क्या न खरीदें/क्या न करें :
- भवन निर्माण या भवन नवीनीकरण/मरम्मत आदि से जुड़ा कार्य इस दिन आरम्भ न करें।
- तामसिक भोजन एवं किसी भी प्रकार के व्यसन से दूर रहे।
- आज के दिन प्लास्टिक, लोहा एवं एल्युमीनियम की वस्तु न खरीदें।
- भूल से भी आज के दिन तुलसी के पत्ते न तोड़ें।
- उधारी में कोई भी सामान न खरीदें।
- मांस/मदिरा का सेवं कतई न करें।