एकादशी : संक्षिप्त परिचय
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एक सामान्य वर्ष भर में 24 एकादशी आती हैं मतलब की हर महीने में 2 एकादशी| हर 3 वर्ष में एक मल मास का महीना बढ़ जाता है और इसीलिए उस वर्ष में 26 एकादशी आती हैं। एक एकादशी कृष्ण पक्ष में और एक एकादशी शुक्ल पक्ष में – ऐसे करके हर महीने में 2 एकादशियाँ आती हैं।एकादशी का व्रत भगवान “ श्री हरी विष्णु” की पूजा निमित्त रखा जाता है और वही इस व्रत के अधिष्ठाता देव हैं।
अपरा एकादशी
अपरा एकादशी का व्रत हर वर्ष, ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है।
अपरा एकादशी का व्रत सब पापों का नाश करने वाला एवं सुख सौभाग्य का देने वाला होता है। ऐसी मान्यता है कि अपरा एकादशी का व्रत करने से भगवान श्रीहरि विष्णु मनुष्य के जीवन से सभी कष्टों को दूर कर अपार पुण्य प्रदान करते हैं। धर्मग्रंथों में वर्णित है कि यह एकादशी बहुत पुण्य प्रदान करने वाली और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है।
इस व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा, परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ‘अपरा’ को उपवास करके एवं इस महत्व को पड़ने और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। । इस व्रत को श्रद्धापूर्वक निभाने वाले व्यक्ति को सभी बुरे कर्मों के फलों से छुटकारा मिल जाता है।
अपरा एकादशी के अन्य प्रचलित नाम
अपरा एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा, भारत के कई क्षेत्रों में इस व्रत को जलक्रीड़ा एकादशी और भद्रकाली एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस एकादशी में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा का विशेष महत्व है।
अपरा एकादशी का महत्व/महातम्य
- एकादशी का व्रत, भगवान विष्णु को अति प्रिय एवं प्रसन्न करने वाला होता है।
- शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामना पूरी होती है।
- एकादशी का व्रत रखने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर सुखी जीवन भोगता है|
- एकादशी व्रत विधिवत करने से गृहस्थ जीवन में खुशहाली बनी रहती है|
- इस व्रत के करने से भगवन विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
अपरा एकादशी पूजा विधि
- सर्वप्रथम तो प्रातः काल उठकर,दैनिक क्रियाकलापों से निवृत होकर स्नान करना चाहिए|
- तत्पश्चात भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर एकादशी का व्रत शुरू करें|
- अपरा एकादशी के व्रत पर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा का विधान है।
- अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए सभी पापों के लिए, भगवान् से क्षमा प्रार्थना करें।
- अन्न नियंत्रण के साथ साथ, अपनी इन्द्रियों और मन पर भी नियंत्रण बहुत आवश्यक है|
- काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार आदि से दूर रहें एवं निर्मल चित्त से भगवान का स्मरण करें|
- रात्रि को अगर संभव हो तो जमीन पर और भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने ही सोवें|
अपरा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार महीध्वज नाम का एक दयालु, उदार राजा था। राजा तो बहुत ही अच्छा एवं परोपकारी व्यक्ति था परन्तु उसका छोटा भाई क्रूर, अधर्मी और अन्यायी प्रवृति का था। उसका नाम था ब्रजध्वज, और वह राजा या अपने बड़े भाई को पसंद नहीं करता था और इसी कारण ब्रजध्वज हमेशा अपने भाई महीध्वज को नुकसान पहुंचने की फ़िराक में ही रहता था।
कई असफल प्रयासों के बाद एक दिन उसको अपने इस नीच कर्म में सफलता मिल ही गयी और उसने मौका पाकर राजा महीध्वज को मार दिया और उसके शव को एक जंगली पीपल के पेड़ के नीचे दफना दिया।
राजा की असामयिक मृत्यु और अंतिम संस्कार न होने की वजह से राजा प्रेतात्मा के रुप में उसी पीपल के पेड़ पर रहने लगा। प्रेत योनि में रहते हुए भी राजा ने कोई अनिष्ट करम नहीं किया था और इसी कारण जब एक दिन ऋषि धौम्य वहां से गुजर रहे थे तो उन्होने इस प्रेत को पहचानकर उसकी मदद करनी चाही।
धौम्य ऋषि ने राजा महीध्वज से पूछा की तुम प्रेत कैसे बन गए? इस पर राजा ने साडी कहानी कह सुनाई तब मुनीश्वर ने राजा को ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। राजा ने प्रेत रूप में ही ऋषि की सलाह अनुसार अपरा एकादशी का व्रत किया जिसके पुण्य प्रताप से राजा को मुक्ति मिल गई और उसे स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ।
विशेष उपाय
अपरा एकादशी के दिन टिल दान और अन्न दान का विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसके अलावा छाता और बिस्तर आदि का दान भी अति शुभ फल देने वाला माना गया है।