देवउठनी एकादशी
Contents
एकादशी : एक परिचय
एकादशी का व्रत, हिन्दू समाज में अत्यंत प्रचलित एवं शुभ फल देने वाला माना गया है। एक सामान्य वर्ष भर में 24 एकादशी आती हैं मतलब की हर महीने में 2 एकादशी। हर 3 वर्ष में एक मल मास का महीना बढ़ जाता है और इसीलिए उस वर्ष में 26 एकादशी आती हैं। एक एकादशी कृष्ण पक्ष में और एक एकादशी शुक्ल पक्ष में – ऐसे करके हर महीने में 2 एकादशियाँ आती हैं। एकादशी का व्रत भगवान “ श्री हरी विष्णु ” की पूजा निमित्त रखा जाता है और वही इस व्रत के अधिष्ठाता देव हैं।
देवउठनी एकादशी
देवउठनी एकादशी का व्रत हर वर्ष, कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। ऐसी मान्यता है की की आसाढ़ माह में सोये हुए देव आज ही के दिन अपनी चातुर्मास निद्रा से उठकर, सृष्टि का संचालन पुनः अपने हाथों में लेते हैं। आज ही के दिन चातुर्मास का समापन माना जाता है।
देव उठने के कारण आज ही के दिन से मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है एवं शादी ब्याह के शुभ मुहूर्त / साये शुरू हो जाते हैं। कई क्षेत्रों में आज यानि एकादशी के दिन तुलसी माता और भगवान शालिग्राम का विवाह भी आयोजित किया जाता है। ऐसी मान्यता भी है की जिन दम्पत्तियों के घर में पुत्रियां नहीं होती, वो लोग इस दिन तुलसी विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।
देवउठनी एकादशी के अन्य नाम
देवउठनी एकादशी को भारत देश के अलग अलग हिस्सों में कई अलग नामों से भी जाना जाता है। उदाहरण के तौर पर इसको प्रबोधिनी एकादशी, देव उठान एकादशी, हरी प्रबोधिनी एकादशी आदि के नाम से भी जाना जाता है।
देवउठनी एकादशी 2024
इस वर्ष देव उठानी एकादशी का व्रत दिनांक 12 नवंबर, दिन मंगलवार को रखा जायेगा।
देवउठनी एकादशी का महत्व/महातम्य
- एकादशी का व्रत, भगवान विष्णु को अति प्रिय एवं प्रसन्न करने वाला होता है।
- शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामना पूरी होती है।
- देवउठनी एकादशी के दिन सभी मांगलिक कार्य पुनः आरम्भ हो जाते हैं।
- एकादशी व्रत विधिवत करने से गृहस्थ जीवन में खुशहाली बनी रहती है|
- इस व्रत के करने से भगवान् विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का विशेष महत्व है।
- ऐसी मान्यता है की इस व्रत के करने से व्यक्ति जाने अनजाने में किये हुए पापों से मुक्त हो, मोक्ष का अधिकारी बन जाता है।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
- सर्वप्रथम तो प्रातः काल उठकर,दैनिक क्रियाकलापों से निवृत होकर स्नान करना चाहिए|
- तत्पश्चात भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरुप की पूजा-अर्चना कर एकादशी का व्रत शुरू करें|
- अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए सभी पापों के लिए, भगवान् से क्षमा प्रार्थना करें।
- अन्न और जल पर नियंत्रण के साथ साथ, अपनी इन्द्रियों और मन पर भी नियंत्रण बहुत आवश्यक है|
- इस दिन भगवान् विष्णु के शालिग्राम अवतार की पूजा करने के साथ साथ तुलसी भी जरूर अर्पित करें।
- काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार आदि से दूर रहें एवं निर्मल चित्त से भगवान का स्मरण करें|
- रात्रि को अगर संभव हो तो जमीन पर और भगवान विष्णु / शालिग्राम की प्रतिमा के सामने ही सोवें|
देवउठनी एकादशी व्रत कथा
यह कथा उस समय की है जब धरती पर शंखचूड़ दैत्य का राज था। उसने ब्रह्मा जी की तपस्या करके अनेक वरदान प्राप्त कर लिए और अंत में उसने ब्रह्मा जी से वर माँगा की वह अमर हो जाये। इस पर ब्रह्मा जी ने उस को कहा की बदरीवन में जाकर तुलसी से विवाह करो और उसके बाद सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करो। जब तक तुलसी का सतीत्व अखंडित रहेगा तब तक कोई तुमको नहीं मार पायेगा ।
दैत्य ने ब्रह्मा जी की बात मानकर ऐसा ही किया और समय बीतने के साथ साथ शक्ति के मद में चूर होकर उसका अहंकार बढ़ता चला गया। इसी अहंकार के चलते उसने तीनों लोकों में उत्पात मचा दिया और सब तरफ त्राहि-त्राहि की गूंज उठने लगी।
अंत में देवों की विनती पर भगवान् शिव उस राक्षस से युद्ध करने गए परन्तु ब्रह्म देव के वरदान के चलते उस असुर का अंत ही नहीं हो रहा था। ऐसे में भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और वह देवी तुलसी के पास गए। उन्होने कहा की मैं युद्ध जीत गया हूँ । यह सुनकर देवी तुलसी ने शंखचूड़ समझ कर भगवान् विष्णु का पूजन किया एवं रमन किया। पर-पुरुष रमन के कारण तुलसी का सतीत्व खंडित हो गया और उसी क्षण भगवान् महादेव ने उस राक्षस का वध कर दिया
देवी तुलसी को जब इस बात का आभास हुआ की भगवान् विष्णु ने उसके साथ छल किया है तो उसने भगवान् विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। इस पर भगवान् विष्णु ने कहा की देवी आपने बहुत लम्बे समय तक तपस्या की है ओट उस तपस्या के कारण आप पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसी का पौधा बन कर पृथ्वी पर निवास करोगी और मैं पत्थर बनकर ( शालिग्राम रूप ) में सदा आपके साथ रहूँगा।
इस युद्ध के पश्चात भगवान् विष्णु निद्रा में चले गए और फिर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को उनकी निद्रा खुली और सभी देवों ने उनका वंदन किया। तब ही से यह तुलसी विवाह की प्रथा चली आ रही है और इस दिन तुलसी विवाह करने से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है।
बिंदायक जी की कथा:
बिंदायक जी की कथा पढ़ने के लिए इस लिंक में जाएं:https://hindipen.com/bindayak-ji-ki-katha/