दुबड़ी आठे 2024 / दुर्वाष्टमी 2024 : पूजन विधि एवं व्रत कथा

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दुबड़ी आठे

दुबड़ी आठे क्या है :

दुबड़ी आठे व्रत संतान प्राप्ति, संतान सुख तथा संतान की रक्षा के लिए किया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है। संतान की कुशलता और उन्नति के लिए इस व्रत का काफी महत्व होता है और संतान की सुरक्षा का भाव लिए स्त्रियां इस व्रत को पूरी विधि के साथ करती है।

दुबड़ी आठे कब मनाई जाती है :

दुबड़ी आठे का व्रत हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है जो श्री कृष्ण जन्माष्टमी के लगभग 2 सप्ताह बाद आती है।

दुबड़ी आठे 2024 में कब मनाई जाएगी :

इस वर्ष 2024 में, दुबड़ी आठे का व्रत 11 सितम्बर दिन बुधवार को रखा जायेगा। इस व्रत से सम्बंधित सम्पूर्ण पूजा विधि और व्रत कथा को आप आगे विस्तार पूर्वक पढ़ सकते हैं।

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दुबड़ी आठे पूजा विधि :

इस व्रत की विधि बहुत ही आसान है और अन्य व्रतों की भांति इस व्रत में खान पान का कोई विशेष प्रतिबन्ध नहीं है। केवल सुबह के समय एक रात पहले बनी रोटी से दिन आरम्भ करना होता है और उसके बाद आप कुछ भी खा सकते हैं।
इस पर्व की तैयारी एक दिन पहले शुरू की जाती है जिसमें सबसे पहले तो चने मोठ को पानी में भिगोकर रखा जाता है जिसको अगले दिन कहानी कहते/सुनते समय इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा अगले दिन के नाश्ते के लिए भी रोटी बना कर रख ली जाती हैं जिनको कहानी कहने के बाद खाया जाता है।
अब अष्टमी के दिन प्रातः काल उठकर पिली मिटटी या फिर हल्दी को भिगो दें। अब इसके बाद लकड़ी के एक पटरी पर दुबड़ी आठे का चित्र बना कर रख लेवें। चित्र बनाने के लिए पटरी पर 7 बहु और 7 बेटों की आकृति बना लें और 7 छोटी मटकियों या कुल्हियों की भी आकृति बना लें । इसके साथ ही झाड़ू की सींख को मोड़कर, दरवाजे के आकर में ढाल कर पटरी के बीच में सजा लें।

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अब पूजा आरम्भ करें। अपने हाथ में कुछ दाने चने मोठ के ले लें और कहानी शुरू करें। कहानी कहते/सुनते समय इन दानों को छीलते रहे और कहानी पूर्ण होने के बाद , पानी का लोटा जिसमें थोड़ा दूध भी मिला हो, उसको सूर्यदेव को अर्पित कर दें। इसके बाद अलग से एक लोटे या गिलास में पानी लेकर, बाने को मिन्शें और अपनी सास को दे दें और बचा हुआ पानी किसी गमले में डाल दें।

इसके बाद रात की बासी रोटी से भोजन/ नाश्ता कर लें और फिर पूरे दिन अपनी रूचि का भोजन ( शाकाहारी ) कर सकते हैं।

दुबड़ी आठे का बाना

दुबड़ी आठे के बाना में आप भीगे हुए चने , मोठ, मिठाई , फल एवं कुछ पैसे निकल सकते हैं। इस बाने को पानी द्वारा मिनश कर अपनी सासु को दें और अगर सासु न हो तो किसी भी सास सामान स्त्री को दें।

दुबड़ी आठे का उद्यापन

जिस वर्ष घर की बेटी की शादी हो जाती है उस वर्ष इस व्रत का उद्यापन किया जाता है। जिस दिन डुबरी आथे होती है उस से एक दिन पहले बेटी अपनी मायके आ जाती है। अगले दिन कहानी कहने के बाद 2 बाने निकाले जाते हैं। एक बाना लड़की का अपना बाना होता है जिसमें वह किसी ढक्कनदार बर्तन में भीगे हुए चने – मोठ, मिठाई, फल एवं कुछ रूपए होते हैं और दूसरा बाना लड़की की माँ का विशेष बाना होता है जिसमें चने, मोठ, फल, मिठाई, रूपए के साथ साथ लड़की की सास के लिए एक साड़ी – ब्लाउज भी निकाला जाता है।

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दुबड़ी आठे कथा / दुर्वाष्टमी कथा

प्राचीन काल में एक साहूकार था जिसके सात बेटे थे। अच्छा धन-मान और 7 पुत्रों का पिता होने के बाद भी वह साहूकार बहुत ही परेशान रहता था और उसकी यह परेशानी भी बेवजह नहीं थी। दरअसल उसके साथ एक बड़ी ही अजीब घटना घट रही थी की वह अपने जिस भी बेटे का विवाह करता था वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता था। और ऐसा होते होते उसके 6 पुत्रों की मृत्यु हो चुकी थी।
अब उसने अपने सबसे छोटे पुत्र का विवाह भी तय कर दिया था और विवाह की तिथि भी निश्चित कर ली गयी थी परन्तु साहूकार अब और भी ज्यादा परेशान हो गया था। समय बीता और विवाह की तिथि भी नजदीक आ पहुंची तो साहूकार की बहन भी विवाह में सम्मिलित होने के लिए साहूकार के घर की ओर चल पड़ी।
रास्ते में उस बहन को चक्की पिसती हुई एक बुढ़िया दिखाई दी ओर उसने उस बुढ़िया को सारी बात बताई। इसके बाद बुढ़िया ने कहा ” साहूकार के आखिरी पुत्र की मृत्यु भी लिखी हुई है। वह लड़का विवाह के दिन घर से निकलते ही दिवार गिरने से मर जायेगा, अगर वहां से बच गया तो बारात के ऊपर पेड़ गिरने से मर जायेगा , अगर यहाँ बचा तो ससुराल जाकर दरवाजा गिरने से मर जायेगा और अगर वहां भी बच गया तो मंडप में सांप के काटने से मर जायेगा। ”
यह सब बात सुनकर लड़के की बुआ ने बुढ़िया माई से कहा की माँ कोई बचने का उपाय हो तो बताओ। इस पर बुढ़िया ने कहा की उपाय तो है पर कठिन है पर बुआ के आग्रह करने पर बुढ़िया ने उपाय बताना शुरू किया।
बुढ़िया ने कहा ” जब लड़का घर से निकले तो दीवार को फोड़कर वहां से लड़के को निकल कर ले जाना। इसके बाद बारात को कहीं भी पेड़ के नीचे मत रुकने देना। ससुराल पहुंचकर भी दरवाजा फोड़कर उस को ससुराल में प्रवेश करवाना और मंडप में फेरों के समय एक कटोरे में दूध रख लेना और साथ में एक तांत का फंसा भी बना कर रख लेना।”
बुढ़िया माई ने आगे कहा ” अब फेरों के समय जब सांप दूध पी ले तो उसको उस फंदे में फंसा लेना जिसके बाद सर्पिणी आएगी और उस सांप को छोड़ने की बात कहेगी। सांप को छोड़ने के लिए तुम उस से अपने 6 भतीजों के प्राण वापस मांग लेना। मगर एक बात ध्यान रहे की यह बात किसी को नहीं बतानी है अन्यथा कहने वाले और सुनने वाले दोनों की मृत्यु हो जाएगी। ” इसके बाद उस बुढ़िया ने अपना नाम दुबड़ी माता बताया और बुआ को वहां से विदा कर दिया।
अब बुआ अपने भाई के घर आ गयी और जब बारात घर से निकलने लगी तो बुआ ने घर के पीछे की दीवार तुड़वाकर भतीजे को बाहर निकाला और दूल्हे के बाहर निकलते ही घर की आगे वाली दीवार अचानक से गिर गयी। इसके बाद बारात जब थोड़ी आगे पहुंची तो धुप से बचने के लिए दूल्हे को एक पेड़ नीचे बैठने के लिए कहा गया इस पर बुआ ने उसको धुप में बिठा दिया और धुप में बैठते ही एक सूखा पेड़ जमीन पर गिर गया।
अब बारात जब लड़की के घर पहुंची तो बुआ ने आगे के द्वार की जगह पीछे के द्वार को तुड़वाकर वहां से दूल्हे को प्रवेश दिलाया जिसके बाद घर का मुख्य द्वार भरभराकर टूट गया। और अब फेरों के समय फिर से, बुआ ने दुबड़ी माता के कहे अनुसार दूध का कटोरा और तांत का फंसा मंगवाकर रख लिया और जब सांप दूध पीने लगा तो उसको फंदे में फंसा लिया।
अब उस सांप को बचाने के लिए सर्पिणी आयी तो लड़के की बुआ ने अपने 6 भतीजों के प्राण मांग लिए और इस पर सर्पिणी ने उसको 6 भतीजे वापस कर दिए और अपने सर्प को अपने साथ वापस लेकर चली गयी।
इस प्रकार विवाह सकुशल संपन्न हो गया और साहूकार के अन्य 6 पुत्र भी जीवित हो गए। उस बुढ़िया माई के नाम अर्थात दुबड़ी के नाम पर दुबड़ी आठे पड़ गया। और इस पर्व को सभी के द्वारा संतान की सुख समृद्धि के लिए श्रद्धा पूर्वक मनाया जाने लगा। हे दुबड़ी माता, जिस प्रकार साहूकार के पुत्रों की रक्षा करी वैसे ही पूरे संसार की मनोकामना पूर्ण करना और सब पर अपनी कृपा बनाये रखना।

 

विशेष:इस कथा के बाद बिंदायक जी महाराज की कथा जरूर कहें|

बिंदायक जी की कथा:

बिंदायक जी की कथा पढ़ने के लिए इस लिंक में जाएं:https://hindipen.com/bindayak-ji-ki-katha/

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