इंदिरा एकादशी 2024 : पितरों को मिलेगा मोक्ष और पाप कर्मों से मुक्ति

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इंदिरा एकादशी

एकादशी : एक परिचय

एकादशी का व्रत, हिन्दू समाज में अत्यंत प्रचलित एवं शुभ फल देने वाला माना गया है। एक सामान्य वर्ष भर में 24 एकादशियाँ आती हैं मतलब की हर महीने में 2 एकादशी। हर 3 वर्ष में एक मल मास का महीना बढ़ जाता है और इसीलिए उस वर्ष में 26 एकादशी आती हैं। एक एकादशी कृष्ण पक्ष में और एक एकादशी शुक्ल पक्ष में – ऐसे करके हर महीने में 2 एकादशियाँ आती हैं। एकादशी का व्रत भगवान “ श्री हरी विष्णु ” की पूजा निमित्त रखा जाता है और वही इस व्रत के अधिष्ठाता देव हैं।

इंदिरा एकादशी

इंदिरा एकादशी का व्रत हर वर्ष, आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। ऐसी मान्यता है की इस व्रत के करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है एवं व्रत करने वाला प्राणी भी सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष का अधिकारी बन जाता है।
प्राचीन काल के राजा इन्द्रसेन से जुड़े होने के कारण ही इस व्रत को इंदिरा एकादशी कहा जाता है।

इंदिरा एकादशी के अन्य नाम

इंदिरा एकादशी को भारत देश के अलग अलग हिस्सों में कई अलग नामों से भी जाना जाता है। उदाहरण के तौर पर इसको पितृ पक्ष में होने के कारण पितृ पक्ष एकादशी भी कहा जाता है।

इंदिरा एकादशी 2024

इस वर्ष इंदिरा एकादशी का व्रत दिनांक 28 सितम्बर 2024, दिन शनिवार को रखा जायेगा।

इंदिरा एकादशी का महत्व/महातम्य

  • एकादशी का व्रत, भगवान विष्णु को अति प्रिय एवं प्रसन्न करने वाला होता है।
  • शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामना पूरी होती है।
  • इंदिरा एकादशी का व्रत रखने वाले मानव के पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।
  • एकादशी व्रत विधिवत करने से गृहस्थ जीवन में खुशहाली बनी रहती है|
  • इस व्रत के करने से भगवान् विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • इंदिरा एकादशी का यह व्रत भगवान् विष्णु के शालिग्राम अवतार से जुड़ा है।
  • ऐसी मान्यता है की इस व्रत के करने से व्यक्ति जाने अनजाने में किये हुए पापों से मुक्त हो, मोक्ष का अधिकारी बन जाता है।

इंदिरा एकादशी पूजा विधि

  • सर्वप्रथम तो प्रातः काल उठकर,दैनिक क्रियाकलापों से निवृत होकर स्नान करना चाहिए|
  • तत्पश्चात भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरुप की पूजा-अर्चना कर एकादशी का व्रत शुरू करें|
  • अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए सभी पापों के लिए, भगवान् से क्षमा प्रार्थना करें।
  • अन्न और जल पर नियंत्रण के साथ साथ, अपनी इन्द्रियों और मन पर भी नियंत्रण बहुत आवश्यक है|
  • इस दिन भगवान् विष्णु के शालिग्राम अवतार की पूजा करने के साथ साथ तुलसी भी जरूर अर्पित करें।
  • काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार आदि से दूर रहें एवं निर्मल चित्त से भगवान का स्मरण करें|
  • रात्रि को अगर संभव हो तो जमीन पर और भगवान विष्णु / शालिग्राम की प्रतिमा के सामने ही सोवें|

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इंदिरा एकादशी व्रत कथा

यह कथा सतयुग से सम्बंधित है। धरती पर एक महिष्मति नाम का राज्य हुआ करता था जिसपर राजा इन्द्रसेन का राज था। कहा जाता है की राजा इन्द्रसेन अति बलवान और पराक्रमी था और अपने राज्य को सब प्रकार से कुशलता पूर्वक चला रहा था। उसके राज्य में प्रजा अति प्रसन्न एवं समृद्ध थी और राजा के प्रति उन सबके ह्रदय में सम्मान का भाव था। अपने भौतिक कर्त्वयों का पालन करने के साथ साथ, राजा आध्यात्म से भी भली भांति जुड़ा हुआ था और अपने इष्ट देव भगवान विष्णु का परम भक्त था।
एक दिन जब इन्द्रसेन अपने दरबार में राज काज सम्बन्धी सभा में था तभी देवऋषि नारद उसके दरबार में आ पहुंचे। राजा इन्द्रसेन ने उनको प्रणाम कर, आसन प्रदान किया और उनके आने का मंतव्य जानना चाहा। इस पर नारद जी ने कहा ” हे राजन आप उत्तम कुल और उत्तम बुद्धि वाले एक सदाचारी राजा हो एवं साथ ही भगवान विष्णु के परम भक्त हो जिस कारण आपने, अपना लोक एवं परलोक दोनों को सिद्ध कर लिया है परन्तु …” और ऐसा कहकर नारद जी चुप हो गए। राजा इन्द्रसेन ने पुनः कहा की देवऋषि परन्तु क्या? आप क्या कहना चाहते हैं कृप्या निःसंकोच मुझसे कहिये और अपनी बात को पूरा कीजिये।
अब नारद जी ने कहा ” सुनो राजन, मैं जब ब्रह्माण्ड भ्रमण कर रहा था तो मैं देव लोक से निकलने के बाद यमलोक की और भी गया था और वहां पर मैंने तुम्हारे पूर्वजों को यमलोक की यातनाओं में कष्ट भोगते हुए पाया। जब मैंने उनसे इस दयनीय स्तिथि का कारण पुछा तो उन्होने कहा की पूर्व जन्मों के अनजाने में किये हुए कुछ पाप कर्मों के कारण उनको यह सब भोगना पड़ रहा है। ”
नारद जी ने आगे कहा ” इसके अलावा आपके पितरों ने आपके लिए एक सन्देश भी भिजवाया है जिसके माध्यम से उनकी मुक्ति हो सकती है। उन्होंने कहलवाया है की यदि आप आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत विधि पूर्वक करें तो उनको मोक्ष मिल जायेगा क्योंकि यह एकादशी पितृ पक्ष में आती है और पितरों को मोक्ष प्रदान करती है।”
राजा इन्द्रसेन ने नारद जी से आगे पुछा ” मैं आपके कहे अनुसार इस व्रत को विधि पूर्वक करूँगा किन्तु मुझे इस व्रत की विधि ज्ञात नहीं है। आप कृपा कर मुझसे इस व्रत को करने की सही विधि कहे ताकि मेरे पूर्वजों को मोक्ष मिल सके।”
देवऋषि ने आगे कहा ” राजन व्रत विधि बहुत ही आसान है। आपको प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्न्नान करवाना है। इसके बाद उन्हे तुलसी-दल अर्पित करके उपवास का प्राण करना है और यथा शक्ति ब्राह्मणों को भोजन आदि करवाकर और दक्षिणा देकर विदा करना है। पूरे दिन उपवास करना है और रात को शालिग्राम भगवन के चरणों में शयन करना है। इस व्रत को यदि आप बताई गयी विधि से सम्पूर्ण करते हैं तो निश्चित ही आपके पूर्वजों की मुक्ति हो जाएगी।” यह कहकर देवऋषी अंतर्धयान हो गए।
राजा इन्द्रसेन ने बताई गयी विधि के अनुसार इस इंदिरा एकादशी व्रत का पालन किया और जब रात को वह शयन कर रहा था तब उसके स्वपन में भगवान् विष्णु जी ने उसको दर्शन दिए और कहा की राजन तुम्हारे इस व्रत के प्रताप से तुम्हारे पितरों को मोक्ष प्राप्त हो गया है एवं साथ ही साथ तुम भी मोक्ष के अधिकारी बन गए हो।
अंत समय राजा भी इस व्रत के पुण्य फल के कारण मोक्ष को प्राप्त हुआ और तभी से इस एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाने लगा।  

 

बिंदायक जी की कथा:

बिंदायक जी की कथा पढ़ने के लिए इस लिंक में जाएं:https://hindipen.com/bindayak-ji-ki-katha/

 

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