19 या 20 फरवरी:कब है जया एकादशी?हमारे साथ जानिए पूजा विधि,कथा और महत्व

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एकादशी : संक्षिप्त परिचय

एक सामान्य वर्ष भर में 24 एकादशी आती हैं मतलब की हर महीने में 2 एकादशी| हर 3 वर्ष में एक मल मास का महीना बढ़ जाता है और इसीलिए उस वर्ष में 26 एकादशी आती हैं। एक एकादशी कृष्ण पक्ष में और एक एकादशी शुक्ल पक्ष में- ऐसे करके हर महीने में 2 एकादशियाँ आती हैं।एकादशी का व्रत भगवान “विष्णु श्री हरी” की पूजा निमित्त रखा जाता है और वही इस व्रत के अधिष्ठाता देव हैं।

जया एकादशी

यह एकादशी, माघ माह के शुक्ल पक्ष में आती है|ऐसी मान्यता है की इस व्रत के करने से सभी पापों का नाश होता है एवं प्राणी सभी दुखों से मुक्त हो जाता है|इसी कारण इसको जया एकादशी के नाम से जाना जाता है|

जया एकादशी 2024

इस वर्ष 2024 में यह जया एकादशी का व्रत 20 फरवरी-दिन मंगलवार को रखा जायेगा और इसका पारण अगले दिन अर्थात 21 फरवरी-दिन बुधवार को होगा|

जया एकादशी का महत्व/महातम्य

  • एकादशी का व्रत, भगवान विष्णु को अति प्रिय एवं प्रसन्न करने वाला होता है।
  • शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और सभी  मनोकामना पूरी होती है।
  • जया एकादशी का व्रत रखने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर सुखी जीवन भोगता है|
  • एकादशी व्रत विधिवत करने से गृहस्थ जीवन में खुशहाली बनी रहती है|
  • इस व्रत के करने से भगवन विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है|

जया एकादशी पूजा विधि

  • सर्वप्रथम तो प्रातः काल उठकर,दैनिक क्रियाकलापों से निवृत होकर स्नान करना चाहिए|
  • तत्पश्चात भगवन विष्णु की पूजा अर्चना कर एकादशी के व्रत शुरू करें|
  • अन्न के साथ साथ अपनी इन्द्रियों और मन पर भी नियंत्रण बहुत आवश्यक है|
  • काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार आदि से दूर रहे एवं निर्मल चित्त से भगवान का स्मरण करें|
  • जया एकादशी के दिन कपड़े और भोजन दान का विशेष महत्व है|
  • दक्षिण भारत में इसको भूमि एकादशी या भीष्म एकादशी के नाम से भी जाना जाता है|
  • रात्रि को अगर संभव हो तो जमीन पर और भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने ही सोवें|

जया एकादशी व्रत कथा

देवराज इन्द्र की सभा में उत्सव मनाया जा रहा था और सभी देव,दिव्य पुरुष आदि उत्सव का आनंद ले रहे थे|उत्सव के दौरान गन्धर्व गीत गए कर उपस्तिथ लोगों का मनोरंजन कर रहे थे।इन हंधर्वों में एक गंधर्व था जिसका नाम था माल्यवान| वह बहुत ही मधुर आवाज में गता था|माल्यवान की आवाज़ जितनी सुन्दर और मोहक थी उतना ही उसका रूप भी मोहक था और वह बहुत ही सुन्दर देह का स्वामी था|
आज के उत्सव में गीत गाते समय, माल्यवान का ध्यान बार बार अपनी रूपवती प्रेमिका की और खिंचा चला जा रहा था| और इस ध्यान भंग होने के कारण वह बार बार अपने सुर ताल से भटक रहा था। देवराज इंद्र को जब यह पता चला की इस सुर ताल के बिगड़ने के पीछे गन्धर्व का उस प्रेमिका के प्रति मोह है तो उन्होंने उसको श्राप दे दिया की तुम और तुम्हारी वो प्रेमिका जिसकी वजह से तुम्हारा ध्यान इस सभा में नहीं हैं, तुम दोनों अभी इसी वक़्त पिशाच बनकर मृत्युलोक में दुखों को भोगोगे|
श्राप के कारण उन दोनों को अपना सुन्दर स्वरुप त्यागकर और स्वर्गलोग छोड़ इस मृत्युलोक में पिशाच योनि में रहना पड़ा|बड़े ही दुःख से जीवन कट रहा था और दोनों बड़े ही कष्ट में  थे।
समय बीतने के साथ एक दिन जया एकादशी का व्रत भी आ गया। संयोग  से उस दिन उन दोनों पिशाचों को भोजन की प्राप्ति नहीं हुई और दोनों को मात्र एक वक़्त के फलाहार से ही गुजारा करना पड़ा जिसके कारण अनजाने में ही सही परन्तु उनको जया एकदशी का पुण्य प्राप्त हुआ।
जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से उनके सारे पाप कट गए| उनको वापिस अपना सुन्दर गंधर्व रूप मिल गया और सुख से वे दोनों वापिस स्वर्गलोक में निवासी बन कर रहने लगे|

उपरोक्त कथा से प्रेरणा लेकर, प्राणी मात्र को इस जया एकादशी का विधिपूर्वक व्रत रखना चाहिए और अपने पापों के लिए श्री हरी से क्षमा याचना कर अपने जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करना चाहिए।

magh-ekadashi

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