कर्म सिद्धान्त: कर्म और भाग्य का ताना-बाना

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सुबह ऑफिस जाने के लिए मोहन अपनी बाइक को स्टार्ट कर रहा था तभी उसने देखा कि पड़ोसी सोहन अपनी नई चमचमाती गाड़ी में बैठकर होरन बजाता हुआ निकल गया। यह देखकर मोहन को थोड़ी बेचैनी सी हुई और सोचने लगा कि मेरे पास कार क्यों नहीं है और यह सोचकर उदास हो गया।

बाइक लेकर थोड़ा आगे चला तो देखा एक व्यक्ति भीड़ भरी बस में लटक कर यात्रा करते हुए अपने काम पर जा रहा है। यह देखकर मोहन के मन में फिर से विचार आया की इसके पास तो बाइक भी नहीं है।

ऑफिस में भी मोहन के मन में पूरा दिन यह विचार चलता रहा कि ऐसा क्यों है कि किसी के पास कार है और किसी के पास मोटरसाइकिल तक भी नहीं है। संसार में इतनी विषमता क्यों है!!?

मन का सवाल

अक्सर जब भी हम परेशान होते हैं या किसी मुश्किल दौर से गुजर रहे होते हैं तो हमारे मन में भी सवाल उठता है कि यह सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा है या मैंने ऐसा क्या गलत किया है कि मेरे जीवन में इस चीज की कमी है। आज हम इसी मुद्दे पर चर्चा करने का प्रयास करेंगे।

विषमता का कारण

बचपन में हम सबने एक कहानी पढ़ी थी जिसकी शिक्षा थी कि “जैसा बोओगे वैसा काटोगे”। यही शिक्षा हमें जीवन के सभी सुख दुखों का कारण बताती है।

चौपाई में भी आता है

“कर्म प्रधान विश्व करि राखा,जो जस करहीं तस फल चाखा”

अर्थात यह विश्व, कर्म प्रधान भूमि है एवं प्रत्येक जीव मात्र को अपने किए अनुसार ही फल मिलता है। अक्सर हम अपनी परेशानियों के लिए दूसरों को दोष देते हैं और और कई बार तो स्वयं भगवान के ऊपर ही उंगली उठा देते हैं कि आपने मेरे साथ अन्याय किया है लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि वह परमात्मा तो कभी अन्याय कर ही नहीं सकता।

यह जो सब हमारे जीवन में घटित हो रहा है उसके लिए कहीं ना कहीं हम सब खुद ही जिम्मेदार हैं और जो हम अब कर रहे हैं इसकी जिम्मेवारी भी हमारी खुद की ही रहेगी। नीचे दी गई कहानी इस पहलु को और स्पष्ट रूप से समझा सकती है:-

साहूकार और गुड़ वाले की कहानी

किसी नगर में एक बहुत ही धनवान साहूकार रहता था। धनवान होने के साथ-साथ वह कपटी भी था और अक्सर पैसे कमाने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल करता था। एक दिन साहूकार की मुलाकात एक व्यक्ति से हुई जो की गुड़ बेचने का काम करता था।साहूकार ने बातों बातों में उसके साथ सौदा किया कि वह उसको रोज एक सेर अनाज देगा और बदले में एक सेर गुड़ लेगा।

सौदा तय हो गया और अब रोज साहूकार उसके पास एक सेर अनाज लेकर आता और बदले में उतना ही गुड़ लेकर चला जाता। एक दिन साहूकार ने उस गुड़ को तोलने के लिए कांटे पर रखा। साहूकार यह देखकर हैरान हो गया की यह तो एक सेर से काफी कम था।

साहूकार गुस्से में तमतमाता हुआ उस गुड़ वाले के पास गया और उसको बहुत गुस्सा किया। इसपर गुड़ वाले ने माफी मांगते हुए कहा “साहूकार जी इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मेरे पास वजन करने के लिए कोई बाट नहीं है और इसीलिए मैं तो तराजू के एक पलड़े पर आपका दिया हुआ अनाज रखकर उसके बराबर का गुड़ आपको दे देता हूं।”

यही गलतफहमी अक्सर हमारे मन में हो जाती है की मैं तो सब अच्छा कर रहा हूं फिर मेरे साथ गलत क्यों हो रहा है लेकिन हम इस बात को नहीं समझ पाते की जो सब हो रहा है वह हमारे किए हुए कर्मों का ही नतीजा है।

अच्छे और बुरे कर्म की पहचान

हर वह कर्म जो किसी को दुख या पीड़ा पहुंचाएं उस कर्म का भोग भी कष्टदायक ही होगा। हमें यह कोशिश करनी चाहिए की हम ऐसा कोई काम ना करें जिसका फल भुगतने में हमें परेशानी हो।

कर्मों का लेखा-जोखा

अब यह बात तो हम सब जानते हैं कि आजकल CCTV कैमरों का जमाना है और हर एक घर में,दुकान में,ऑफिस में मॉल में और लगभग हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं।

सीसीटीवी कैमरे हमें कोई गलत काम करने से नहीं रोकते और ना ही रोक सकते हैं लेकिन हमारे दिमाग में एक डर बन जाता है कि हम कैमरे की निगरानी में हैं और अगर हम कुछ भी गलत करेंगे तो हमें उसका अंजाम भुगतना पड़ेगा। ठीक ऐसे ही दुनिया में कोई एक शक्ति है जो हर वक्त हमारे हर करम को देख रही है और इसका लेखा-जोखा बना रही है जिसे आम भाषा में भगवान,God, अल्लाह, वाहेगुरु आदि के नाम से जानते हैं।

बुरे कर्मों से कैसे बचें

बुरे कर्मों से बचने का बहुत ही सरल उपाय है कि हम उस परमात्मा को सदा अपने आसपास समझें और याद रखें कि वह हमें हर समय देख रहा है। हमारी कोशिश यही होनी चाहिए की कैसे हम उसे परमात्मा की नजर में अच्छे इंसान बनें और इस संसार को अपने अच्छे कर्मों से और बेहतर बना सकें।

अंत में

यह लेख लिखते हुए संत दादू दयाल जी की लिखी हुई एक तुक़ याद आती है जो इस पूरे लेख का सार है:-

दद्दे दोष न दीजिए, दोष करमां आपना।

जो मैं किया सो मैं पाया,दोष ना दीजै अवर जना।।

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