एकादशी : संक्षिप्त परिचय
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एक सामान्य वर्ष भर में 24 एकादशी आती हैं मतलब की हर महीने में 2 एकादशी| हर 3 वर्ष में एक मल मास का महीना बढ़ जाता है और इसीलिए उस वर्ष में 26 एकादशी आती हैं। एक एकादशी कृष्ण पक्ष में और एक एकादशी शुक्ल पक्ष में – ऐसे करके हर महीने में 2 एकादशियाँ आती हैं।एकादशी का व्रत भगवान “ श्री हरी विष्णु” की पूजा निमित्त रखा जाता है और वही इस व्रत के अधिष्ठाता देव हैं।
मोहिनी एकादशी
मोहिनी एकादशी का व्रत हर वर्ष, बैसाख माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। मोहिनी एकादशी का व्रत सब पापों का नाश करने वाला सुख सौभाग्य का देने वाला होता है। योग्य ब्राह्मण को दिया हुआ दान अथवा कठोर तपस्या द्वारा अर्जित पुण्य, ये सब मोहिनी एकादशी के पुण्य से ही प्राप्त हो जाते हैं। इस व्रत को श्रद्धापूर्वक निभाने वाले व्यक्ति को सभी बुरे कर्मों के फलों से छुटकारा मिल जाता है।
मोहिनी एकादशी 2024
इस वर्ष, मोहिनी एकादशी का यह अति पावन व्रत 19-MAY-2024 दिन रविवार को है। आगे इस लेख में हम आपको इस व्रत से जुडी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने वाले हैं, इसलिए अनुरोध है की लेख को पूरा अवश्य पढ़ें ताकि आपको व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
मोहिनी एकादशी का महत्व/महातम्य
- एकादशी का व्रत, भगवान विष्णु को अति प्रिय एवं प्रसन्न करने वाला होता है।
- शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामना पूरी होती है।
- एकादशी का व्रत रखने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर सुखी जीवन भोगता है|
- एकादशी व्रत विधिवत करने से गृहस्थ जीवन में खुशहाली बनी रहती है|
- इस व्रत के करने से भगवन विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
मोहिनी एकादशी पूजा विधि
- सर्वप्रथम तो प्रातः काल उठकर,दैनिक क्रियाकलापों से निवृत होकर स्नान करना चाहिए|
- तत्पश्चात भगवान राम की पूजा-अर्चना कर एकादशी का व्रत शुरू करें|
- मोहिनी एकादशी के व्रत पर भगवान राम की पूजा का विधान है।
- भगवान् श्री राम की प्रतिमा को साफ़ श्वेत कपड़े पहनकर सजाएं।
- इसके बाद प्रतिमा को आसान पर स्थापित करके धुप,दीप,नैवैद्य अर्पित करें।
- तत्पश्चात आरती करके, भगवान् को फलों का भोग लगाएं।
- अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए सभी पापों के लिए, भगवान् से क्षमा प्रार्थना करें।
- अन्न नियंत्रण के साथ साथ, अपनी इन्द्रियों और मन पर भी नियंत्रण बहुत आवश्यक है|
- काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार आदि से दूर रहें एवं निर्मल चित्त से भगवान का स्मरण करें|
- रात्रि को अगर संभव हो तो जमीन पर और भगवान राम की प्रतिमा के सामने ही सोवें|
मोहिनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है जब सरस्वती नदी के किनारे एक नगरी बसी हुई थी। उस नगरी का नाम भद्रावती था और वहां पर चन्द्रवंश से संबंधित धृष्ट्णभ नाम का व्यक्ति राज करता था। वह राजा खुद भी विष्णु भक्त था और उसके राजय में भी अनेकों ही लोग विष्णु भक्त थे। और इन सब विष्णु भक्तों में एक विशेष व्यक्ति भी था जिसका नाम था धनपाल। धनपाल जाती से वैश्य था और विष्णु भक्त होने के कारण सदा परोपकार एवं लोकहित में लगा रहता था और प्रभु भक्ति को भी पूरा समय देता था।
लोगों की सेवा हेतु, धनपाल में कई लोक कल्याणकारी कार्य करवाए थे जैसे की राहगीरों के लिए पानी की व्यवस्था, नए पेड़ों और पौधों का लगाया जाना एवं समय समय पर अन्न दान अदि भी करता रहता था। वैश्य धनपाल की 5 संतान थीं- सुमना, सद्बुद्धि, सुकृति, धृष्ट्बुद्धि एवं मेधावी। धृष्ट्बुद्धि के अलावा अन्य सभी संतान अपने पिता की तरह ही परम विष्णु भक्त एवं सदाचारी प्रवृति की थी। मगर दूसरी तरफ धृष्ट्बुद्धि, दुराचारी प्रवर्ति का था। जुआ खेलना, वेश्याओं का संगम करना आदि नीच कर्मों में ही धृष्ट्बुद्धि लगा रहता था। उसकी इन सब बुरी आदतों से तंग आकर एक दिन धनपाल ने उसको अपने घर से निकाल दिया।
घर से निकले जाने के बाद कुछ दिन तो उसने अपने मित्रों की सहायत से भोजन पानी का प्रबंध किया परनतु उसके बाद वह चोरी कर के अपना पेट भरने लगा। एक बार चोरी करते हुए, उसको सिपाहियों ने पकड़ लिया और कारागार में डाल दिया। परन्तु धृष्ट्बुद्धि अभी भी नहीं सुधरा और कारागार से बाहर आने के बाद फिर से चोरी करने लग गया। और अब दुबारा पकड़े जाने पर, राजा के आदेशानुसार, सिपहियों ने उसको नगर से ही बाहर निकाल दिया।
जंगल में वह पशु पक्षियों को मारकर खाने लगा और बहुत ही दयनीय स्थिति में रहने को मजबूर हो गया। कई बार तो पूरा पूरा दिन ही भूखा रहना पद जाता था और इसी कारण उसके दिन बड़े ही कष्ट में बीत रहे थे। एक दिन यूँही भोजन की तलाश में भटकते हुए वह ऋषि कौडिन्य की आश्रम में जा पहुंचा और उनसे अपनी सारी गाथा कह सुनाई और अंत में बोला की हे ऋषिवर, मुझे मेरे बुरे कर्मों से और इस कष्ट भरे जीवन से मुक्ति का कोई मार्ग बताओ।
धृष्ट्बुद्धि को अपनी गलतिओं का अहसास हो चूका था और इसी कारण ऋषि कौडिण्य को उस पर दया आ गयी और उन्होने उसको मुक्ति का उपाय बताना शुरू किया। ऋषिवर ने उसको बताया की बेस्कः माह में आने वाली मोहिनी एकादशी का व्रत करने से उसके सभी पापों का नाश हो जायेगा और साथ ही उसको इस व्रत से जुडी सम्पूर्ण विधि के बारे में भी बताया।
मोहिनी एकादशी के दिन, धृष्ट्बुद्धि ने ऋषि कौडिण्य के बताए अनुसार विधि पूर्वक इस व्रत को किया और इस व्रत के फल स्वरुप वह पाप से मुक्त होकर एक सामान्य जीवन जीने लगा और अंत समय में उसको भगवान विष्णु के निज धाम में स्थान प्राप्त हुआ।
विशेष उपाय:
तुलसी पूजन
इस दिन माँ तुलसी की पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है एवं जीवन में चल रही कठिनाईओं से मुक्ति मिलती है।
पीले फूल
भगवान् विष्णु को इस दिन पीले फूल अर्पित करने से विवाह सम्बंधित बाधाएं दूर होती हैं।