परिवर्तिनी एकादशी
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एकादशी : एक परिचय
एकादशी का व्रत, हिन्दू समाज में अत्यंत प्रचलित एवं शुभ फल देने वाला माना गया है। एक सामान्य वर्ष भर में 24 एकादशियाँ आती हैं मतलब की हर महीने में 2 एकादशी। हर 3 वर्ष में एक मल मास का महीना बढ़ जाता है और इसीलिए उस वर्ष में 26 एकादशी आती हैं। एक एकादशी कृष्ण पक्ष में और एक एकादशी शुक्ल पक्ष में – ऐसे करके हर महीने में 2 एकादशियाँ आती हैं। एकादशी का व्रत भगवान “ श्री हरी विष्णु ” की पूजा निमित्त रखा जाता है और वही इस व्रत के अधिष्ठाता देव हैं।
परिवर्तिनी एकादशी
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत हर वर्ष, भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। ऐसी मान्यता है की इस व्रत के करने से प्राणी सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करने का अधिकारी बन जाता है।
इसके अलावा यह व्रत और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्यूंकि इस दिन भगवान विष्णु अपनी चातुर्मास की नींद की दौरान करवट बदलते हैं और इसी कारण इसको परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
अन्य नाम
परिवर्तिनी एकादशी को भारत देश के अलग अलग हिस्सों में कई अलग नामों से भी जाना जाता है। उदाहरण के तौर पर परिवर्तिनी एकादशी को पद्मा एकादशी और जलझुलिनी एकादशी नामों से भी जाना जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी 2024
इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी / पद्मा एकादशी का व्रत दिनांक 14 सितम्बर 2024, दिन शनिवार को रखा जायेगा। इस दिन (14 सितम्बर ) को हिंदी दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व/महातम्य
- एकादशी का व्रत, भगवान विष्णु को अति प्रिय एवं प्रसन्न करने वाला होता है।
- शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामना पूरी होती है।
- एकादशी का व्रत रखने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर सुखी जीवन भोगता है|
- एकादशी व्रत विधिवत करने से गृहस्थ जीवन में खुशहाली बनी रहती है|
- इस व्रत के करने से भगवन विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- परिवर्तिनी एकादशी का यह व्रत भगवन विष्णु के वामन अवतार से भी जुड़ा है जो बुराई पर अच्छे की जीत को दर्शाता है।
- ऐसी मान्यता है की इस व्रत के करने से व्यक्ति जाने अनजाने में किये हुए पापों से मुक्त हो जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी पूजा विधि
- सर्वप्रथम तो प्रातः काल उठकर,दैनिक क्रियाकलापों से निवृत होकर स्नान करना चाहिए|
- तत्पश्चात भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर एकादशी का व्रत शुरू करें|
- अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए सभी पापों के लिए, भगवान् से क्षमा प्रार्थना करें।
- अन्न और जल पर नियंत्रण के साथ साथ, अपनी इन्द्रियों और मन पर भी नियंत्रण बहुत आवश्यक है|
- इस दिन भगवान् विष्णु के वामन अवतार की पूजा का विशेष प्रावधान है।
- काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार आदि से दूर रहें एवं निर्मल चित्त से भगवान का स्मरण करें|
- रात्रि को अगर संभव हो तो जमीन पर और भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने ही सोवें|
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
यह कथा त्रेता युग से सम्बंधित है जिस वक़्त पृथ्वी पर दैत्य राज, राजा बलि का आधिपत्य हुआ करता था। ऐसा कहा जाता है की वह भगवान् श्री विष्णु का परम भक्त था और उनकी पूजा अर्चना एवं तपस्या आदि करके उसने बहुत सारे वर प्राप्त कर लिए थे जिनसे वह अत्यंत शक्तिशाली हो गया था। परन्तु अपने इसी बल के अहंकार में चूर होकर उसने देवराज इन्द्र से द्वेष कर लिया और सभी देवताओं को परास्त कर इंद्रलोक पर कब्ज़ा कर लिया।
इस पराजय के बाद सभी देवता भगवान श्री हरी विष्णु के पास गए और उनकी स्तुति और प्रार्थना करके उनसे अपनी समस्या के निवारण हेतु कहा। इस पर भगवान विष्णु ने उनको सहायता करने का वचन दिया।
वचन देने के बाद भगवान विष्णु ने राजा बलि को परास्त करने हेतु अपना पांचवां अवतार ” बामन अवतार ” लिया और राजा बलि के महल पर जाकर तीन पग भूमि दान में मांगी। अपने अहंकार में चूर बलि ने बामन के बौने रूप को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते हुए कहा की 3 पग ही नहीं 3 लोक भूमि दे सकता हूँ, बस तुम अपना रूप विस्तार करो और जितनी भूमि चाहिए उतनी नाप लो।
अब भगवान विष्णु ने अपना रूप विराट किया और 2 पग में समस्त पृथ्वी तथा देव लोक को नाप लिया और राजा बलि से कहा की बताओ अब मैं अपना तीसरा पग कहाँ रखूं क्योंकि तुम्हारी सारी भूमि तो मैं 2 पग में ही नाप चूका हूँ। अब राजा बलि को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने अपना शीश आगे करते हुए कहा की प्रभु आप तीसरा पग मेरे शीश पर रखो।
भगवान विष्णु ने अपना तीसरा पग राजा बलि के शीश पर रख कर उसको पाताल लोक भेज दिया और देवताओं को उनका लोक वापसी लौटा दिया। राजा बलि को पातळ लोक भेज कर जब भगवान् विष्णु वापस जाने लगे तो राजा बलि ने पैर छोड़ने से मना करते हुए कहा की मैं आपके चरणों को अपने मंदिर में रखना चाहता हूँ, कृपया मेरी इच्छा पूर्ण करो।
इस पर भगवान् ने राजा बलि से बामन एकादशी व्रत करने को कहा और राजा बलि के व्रत के पूरा होने पर वह एक प्रतिमा रूप में पाताल लोक के द्वारपाल के रूप में वहीँ पर रहने लगे।
विशेष दान
परिवर्तिनी एकादशी पर नीचे दिए गए दान को करने पर अत्यंत शुभ फल प्राप्त होता है:
- ताम्बा और चांदी का दान
- दही का दान
- चावल का दान
बिंदायक जी की कथा:
बिंदायक जी की कथा पढ़ने के लिए इस लिंक में जाएं:https://hindipen.com/bindayak-ji-ki-katha/