सम्पदा माता का डोरा: व्रत विधि एवं उद्यापन विधि

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सांपदा माता:एक परिचय

सांपदा माता को धन की देवी मन जाता है और ऐसी मान्यता है की जो व्यक्ति सम्पदा माता की कथा सुनते हुए सम्पदा माता का डोरा लेता है और व्रत करता है उसके घर में कभी भी धन सम्पदा की कोई कमी नहीं होती। यह व्रत 2 चरणों में पूर्ण होता है। पहले चरण में सम्पदा  माता का डोरा लिया जाता है और दूसरे चरण में इस डोरे को खोला जाता है। दोनों पड़ाव अलग अलग समय पर एक निश्चित दिन पूरे करने होते हैं और सम्पदा माता की कथा को कहना सुनना होता है तभी यह व्रत पूर्ण होता है।
तो किस दिन लेना होता है यह धन सम्पदा का डोरा और किस दिन व्रत पूरा होता है ये सब जानकारी इस लेख में आगे दी गयी है। हम आपको यह भी बताएंगे की इस व्रत का उद्यापन कब और कैसे किया जाता है और साथ है इसकी व्रत कथा भी आप तक पहुंचाएंगे ताकि आप विधि पूर्वक इस व्रत को पूरा कर माँ सम्पदा का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

सांपदा माता का डोरा लेना

बड़ी होली मतलब की जिस दिन होली खेली जाती है या कहिये दुल्हैंडी के दिन सम्पदा माता का डोरा लिया जाता है। इस डोरा को लेने से पहले इसकी विधिवत पूजा का विधान है जो इस प्रकार है:
सांपदा माता का डोरा कच्चे सूत के धागे का बना होता है जिसको पूजा में इस्तेमाल किया जाता है और आप पंसारी या परचून की दुकान से ले सकते हैं। जिस दिन होलिका दहन होता है उस दिन इस कच्चे सूत के 16 हिस्से या धागे बना लें और इन धागों को होलिका दहन की पवित्र अग्नि के दर्शन करवाकर उसके अंदर 16 गाँठ बाँध लें और अपने घर में रख लें।
होलिका दहन के अगले दिन, इन धागों को हल्दी में रंग कर पीला कर लें। एक लोटे या कलश पर सतिया/स्वास्तिक बना कर उसमें जल भर लें और साथ ही रोली और चावल को पूजा के लिए हाथ में ले लें। यह रोली चावल कलश को चढ़ाकर, जौं के 16 नए दाने हाथ में रख लें और सम्पदा माता की कहानी सुनें/कहें।  कहानी पूर्ण होने के बाद कलश के जल और जौं के दानों से सूर्य देव को अर्घ्य दें और उस डोरे को गले में धारण कर लें।

सांपदा माता का डोरा खोलना

बैसाख का महीना शुरू होने पर , कोई एक सुबह दिन देखकर सम्पदा माता का डोरा खोल देवें और संपदा माता की कहानी सुनें/कहें। इसके बाद व्रत करें और दिन में एक बार ही भोजन करें।
जिस दिन डोरा लिया जाता है और जिस दिन डोरा खोला जाता है, दोनों ही दिन सम्पदा माता की कहानी जरूर सुनें/कहें।

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सम्पदा माता व्रत उद्यापन

8 वर्ष तक इस व्रत को  करने का विधान है, उसके बाद यदि इच्छा पूरी हो जाये तो इस व्रत का उद्यापन कर दें। इसदिन अच्छा सुन्दर सिंगार करें एवं  हाथों में मेहँदी लगायें। इसके बाद 16 जगह पर हलवा और पूरी निकल कर उनपर दक्षिणा रखें और अपने घर 16 ब्रह्मनियों को बुलाकर उनको ये हलवा पूरी का भोग लगाएं। इसके बाद दक्षिणा दे कर उनको विदा करें और सम्पदा माता की कहानी कहकर व्रत का उद्यापन सम्पूर्ण करें।

सम्पदा माता की कहानी

सम्पदा माता की कहानी को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।

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