सम्पदा माता/सांपदा माता की कहानी
बहुत पुरानी बात है, किसी नगर में नल नाम का एक राजा राज किया करता था। रानी दमयंती, नल राजा की पत्नी थी। एक दिन एक बुढ़िया माई महल के नीचे आकर कड़ी हो गयी और साम्पदा माता की कथा सुनाने लगी और साथ साथ डोरा भी बांटने लगी। रानी ने ऊपर से देखा तो उसको भीड़ दिखाई दी परन्तु नीचे क्या हो रहा है यह समझ नहीं आया तो उसने अपनी एक सेविका को नीचे जाकर सब देखने को कहा।
रानी के आदेशानुसार, दासी नीचे गयी और वापिस आकर उसने रानी को सारा हाल कह सुनाया की एक बुढ़िया है जो सम्पदा माता का कच्चे सूत का धागा जो हल्दी में रंगा हुआ है और 16 गांठों वाला है उसको बाँट रही है और सांपदा माता की कथा सुना रही है। दासी ने आगे बताया की बुढ़िया माई कह रही है की जो कोई भी ये कच्चे सूत का धागा अपने गले में पहने और 16 जौं के देने लेकर साम्पदा माता की कथा सुने उसके घर में धन लक्ष्मी का सदा वास रहे। दासी की बात सुनकर रानी ने भी पूजा की और कथा सुनकर वह डोरा गले में पहन लिया।
थोड़ी देर बाद, राजा महल में वापिस आया तो रानी दमयंती के गले में डोरा देखकर पूछने लगा की ये क्या है। इस पर दमयंती ने बताया की यह सम्पदा माता का डोरा है जिसके आशीर्वाद से धन लक्ष्मी का सदा महल में वास रहेगा। इस पर राजा ने कहा की हम तो नगर के राजा हैं और हमारे पास धन की कोई कमी नहीं है इसलिए इस डोरे की तुम्हे कोई जरुरत नहीं और यह कह कर सम्पदा माता का वह डोरा फेंक दिया।
रात को राजा नल के स्वपन में सम्पदा माता आयीं और बोली “राजा मैं तेरे घर से जा रही हूँ।” यह देखकर राजा ने पुछा की आप कौन हो? तब सांपदा माता बोली की मैं संपदा माता हूँ और तूने आज वो डोरा फेंक के मेरा अपमान किया है इसलिए में तेरे महल से जा रही हूँ। और मेरे जाने के बाद तेरा सारा धन कोयला हो जायेगा। यह कहकर सांपदा माता चली गयी।
सुबह राजा सोकर उठा तो उसको अपना सपना याद आया और उसने खजाने में जाकर देखा की सारा धन माल,कोयले में बदल चूका है। राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ पर अब क्या ही किया जा सकता था। अब उसने रानी दमयंती से कहा की यहाँ पर किसी लड़की को छोड़ देते हैं जो रोज यहाँ दिया जलायेगी और महल की सफाई करेगी और हम दोनों किसी गाँव में रहने चलते हैं।
चलते चलते दोनों एक तालाब के किनारे पहुंचे तो राजा ने तो तीतर पकड़ कर मार दिए और रानी से बोलै की तू इनको भून ले तब तक मैं नहा के आता हूँ। रानी ने तीतर भून कर रख लिए परन्तु जैसे ही राजा आया और दोनों पति पत्नी भोजन करने बैठे, वो दोनों तीतर उड़ कर चले गए।
अब राजा रानी दोनों अपनी बहाना के घर गए तो वहां उनकी बहन ने उनको एक पुराने घर में ठहरने को बोलै। उस घर में सोने के बने हुए बच्छी बछेड़ा थे जिनको जमीन खा गयी। यह देख राजा बोलै की यहाँ से चलो वरना चोरी का दोष लग जायेगा। अब वो दोनों राजा एक एक मित्र के यहाँ पहुंचे। व्हाना पर भी जिस जगह राजा रानी रुके हुए थे वहां दिवार पर एक सोने का हार था जिसको दिवार खा गयी और राजा रानी चोरी के इल्जाम से बचने के लिए वहां से भी चले गए।
अब रानी ने राजा को कहा की अब किसी और के घर नहीं जाएंगे बल्कि जंगल में चलेंगे और सूखी लकड़ियां काट व् बेच कर अपना गुजरा कर लेंगे। इस मंशा से वो दोनों एक सूखे हुए बगीचे में पहुंचे और वहीँ सो गए। उनके वहां पर आने से वह बाग़ फिर से हरा भरा और सुन्दर हो गया। सुबह बाग़ के मालिक ने देखा की कल तक जो बाग़ सूखा हुआ था आज कैसे वो एकदम हरा भरा हो गया है। तभी उसकी नजर सोये हुए राजा रानी पर पड़ी तो उसने उनको जगाकर पूछा की तुम कौन हो जिनके आने से ये बाग़ हरा भरा हो गया। इस पर राजा ने कहा की हम तो मुसाफिर हैं और काम की तलाश में घूम रहे हैं।
यह सुनकर बाग़ के मालिक ने उनको बागबानी के काम पर रख लिया। मालिक की पत्नी ने रानी से कहा की तुम्हारा पति यहाँ बागबानी करेगा और तुम इन फूलों की माला बनाकर बाजार में बेच दिया करना। दोनों लोग इस नए काम से अपना जीवन चला रहे थे। एक दिन रानी ने देखा की बाग़ की मालकिन कथा सुन रही है और हाथ में डोरा लिया हुआ है। उसने मालकिन से पूछा तो पता चला की यह साम्पदा माता का ही डोरा है और फिर रानी ने भी कथा सुनी और डोरा लेकर गले में पहन लिया। दमयंती के गले में डोरा देख, राजा नल से फिर पूछा की ये क्या है तो रानी दमयंती ने कहा “यह वही सम्पदा माता को डोरा है जिसको आपने फेंक दिया था और सम्पदा माता हमसे नाराज़ हो गयी थी। पर अब मैने इसको दोबारा पहन लिया है और अगर सम्पदा मात सच्ची हैं तो आप देखना की हमारे अच्छे दिन वापिस आ जाएंगे।”
उसी रात को फिर से राजा नल के स्वपन में एक स्त्री प्रकट हुई। राजा ने उनको पूछा की आप कौन हो, इस पर वह बोली की मैं सम्पदा माता हूँ और तेरे महल में वापिस आ रही हूँ। राजा ने पूछा की मैं कैसे यकीन करूँ तो सम्पदा माता ने कहा की कल सुबह कुए से जल भरने जाओगे तो देख लेना। पहली बार में जौं निकलेंगे, दूसरी बार में हल्दी और तीसरी बार में कच्चा सूत। अगली सुबह राजा जल भरने गया तो पाया की जो सपने में सम्पदा माता ने बोलै था वही हुआ है और यह देख कर राजा प्रसन्न हो गया।
अब राजा ने बाग़ के मालिक को अपनी असलियत बताई और वहां से विदा होकर सीधा अपने दोस्त के घर गया। दोस्त ने उसक नए महल में ठहरने को कहा तो राजा ने कहा की मुझे उसी पुराने महल में रुकना है। राजा ने वहां जाकर देखा की जो सोने का हार दिवार खा गयी थी वो वापिस दिवार पर टंगा हुआ है उसपर राजा ने दमयंती से कहा की चलो हमारा चोरी का कलंक मिट गया। इसके बाद वे दोनों बहन के घर गए तो उसने भी उनको नए घर में ठहरने को कहा इस पर राजा ने कहा की मुझे उसी पुराने घर में रुकना है और फिर उन दोनों ने देखा की सोने के बने हुए बच्छी बछेड़ा जिनको जमीन खा गयी थी वो वापस जमीन पर ही पड़े हुए हैं यह देख राजा ने रानी दमयंती से कहा की चलो हमारा चोरी का कलंक मिट गया। इसके बाद वो महल की और चलते हुए दोबारा उसी तालाब किनारे पहुंचे तो देखा की जो तीतर उड़ गए थे वो अभी भी वहीँ पड़े हुए हैं।
अब दोनों जल्दी से अपने महल में पहुंचे तो देखा की सब और जगमग ही जगमग है और शाही खजाना पुनः सोना चांदी से भर गया है। जिस लड़की को वो दिया जलाने को छोड़ गए थे उसको उन्होने अपनी धर्म पुत्री बना कर उसका विवाह कर दिया। इसके बाद रानी दमयंती ने सम्पदा माता का उद्यापन किया और 16 ब्राह्मणियों को हलवा पूरी का भोजन करवा कर दक्षिणा दी तथा सम्पदा माता की कथा सुनी।
हे सम्पदा माता! राजा के साथ जैसा पहले किया वैसे किसी के साथ मत करना और जैसा बाद में किया वैसे सबके साथ करना। हर कहते सुनते, मन्नत करने वाले की झोली भरना।।।।
इस कथा के बाद बिंदायक जी महाराज/ विनायक जी महाराज की कथा जरूर कहें। इस कथा को पढ़ने के लिए, नीचे दिए गए लिंक पर जाएं।
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