सर्व पितृ अमावस्या एवं पितृ स्त्रोत्रं
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सर्व पितृ अमावस्या / पितृ विसर्जन अमावस्या
पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन पितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है। यह आश्विन माह की अमावस्या को होता है और इसी दिन पितृ पक्ष समाप्त हो जाता है। चूँकि इस दिन सभी पितरों के नाम का दान-भोज आदि किया जाता है इस कारण इसको सर्व पितृ अमावस्या अथवा पितृ विसर्जन अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
पितृ विसर्जन अमावस्या पूजा विधि
आज के दिन को पितरों की शांति की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण माना गया है। आज के दिन सभी पितृ वापस अपने लोक चले जाते हैं और जाते समय अपने घर-परिवार को सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देकर जाते हैं। इसी कारण से आज के दिन पितरों को विदा करते समय शाम के बेला में घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाया जाता है जिसका आशय है की हमारे पितरों का मार्ग प्रकाशवान रहे और साथ ही साथ घर की चौखट पर खीर-पूरी आदि पकवान बना कर पितरों के नाम से रखे जाते हैं ताकि पितृ हमारे घर से भूखे न जाएं।
पितृ अमावस्या के दिन ब्राह्मण भोज एवं दान आदि का विशेष महत्व बताया गया है ताकि पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त हो सके एवं उनका भविष्य का मार्ग सुगम रहे और इन सब से तृप्त होकर पितरों द्वारा कुटुंब को सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।
सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितरों की शांति हेतु, सवा किलो (1.25kg) जौ के आटे से, 16 पिंड बनाने चाहिए। इसमें से 8 पिंड गाय को , 4 पिंड कुत्तों को और बाकि के 4 पिंड कौवों को खिलाकर पितरों की आत्मा शांति हेतु प्रार्थना करनी चाहिए। शाम के समय चौखट पर दीपक जलाकर एवं खीर पूरी का भोग लगाकर, पितृ स्त्रोत का पाठ जरूर करें।
पितृ स्त्रोत
जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न है , उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूं। जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता है, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूं। जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य-चन्द्रमा के भी नायक हैं,उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूं। नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं। जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं। प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।
सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूं। चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूं। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूं। अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूं, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है। जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूं। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हो।